भारतीय जीवन और दर्शन >> संक्रान्ति और सनातनता संक्रान्ति और सनातनताछगन मोहता
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‘संक्रान्ति और सनातनता’ में हमारी संस्कृति की मूल प्रेरणाओं और आज के समाज पर हावी जीवन-दृष्टि का तनाव और अन्तर्विरोध पूरी उत्कटता से उभरकर सामने आया है।
– गणेश मंत्री
डॉ. मोहता की भाषा में अनूठा प्रवाह, प्राणवत्ता और दीप्ति है। वे आलोक-पुरुष हैं। बहुत बड़ी बातें वे सहज ही कह जाते हैं।…
मनीषी चिंतक के ये व्याख्यान भारतीय प्रज्ञा के उत्कर्ष का माध्यम बनने में समर्थ हैं।
– पंकज
‘संक्रान्ति और सनातनता’ के ये निबन्ध ‘समकालीन देह में सनातन आत्मा की पहचान’ करते हैं। डॉ. छगन मोहता वर्तमान के महत्त्व की अनदेखी किये बिना उसे सनातनता के एक आयाम के रूप में स्थापित करते हैं।
– नन्दकिशोर आचार्य
अनुक्रम
- कस्मै देवाय हविषा विधेम
- सामाजिक पुनर्रचना के आधार
- मनुष्य : गरुत्मान नरपशु
- भारतीय परम्परा : मूल दृष्टि
- भारतीय परम्परा : आधुनिक समाज
- पर्यावरण और सनातन दृष्टि
- बुनियादी मूल्य, परिवेश और बाज़ार
- मानवीय मूल्यों का क्रम विकास
- आधुनिकता की समस्याएँ
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